हिंदू धर्म में शिखा रखने की परंपरा सदियों पुरानी है। हिंदू धर्म में कुछ रीति-रिवाज ओर नियम धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं। इनके पीछे कुछ वैज्ञानिक महत्व भी हैं। आइए जानते हैं चोटी रखने के पीछे क्या कारण है। वह किस ग्रंथ में इसका उल्लेख है। पंडितों को चोटी रखना अनिवार्य माना गया है।
यह 16 सांस्कारों में से एक है। इस संस्कार को मुंडन संस्कार कहा जाता है। शास्त्रों में शिखा के आकार के बारे में बताया गया है। सुश्रुत संहिता के अनुसार चोटी गाय के खुद के आकार की रखनी चाहिए। इस आकार की चोटी रखने से मन और मस्तिष्क का संचालन अच्छा रहता है। सुश्रुत संहिता के अनुसार चोटी के स्थान पर नाड़ियों का मिलन होता है। यहां चोट लगने से मनुष्य की मौत तक हो जाती है। इसका संबंध दिमाग और शरीर की सभी इंन्द्रियों से रहता है। इस स्थान को अधिपतिमर्म कहा जाता है। इस जगह पर सुषुम्रा नाड़ी का संगम होता है।
शिखा रखने का संस्कार यज्ञोपवीत में भी किया जाता है। यज्ञोपवीत संस्कार के दौरान जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है। उसे सहस्त्रार चक्र कहते है। इस स्थान पर मनुष्य की आत्मा रहती हैं। विज्ञान के मुताबिक यह मस्तिष्क का केंद्र है। यहीं से बुद्धि, मन और शरीर का नियंत्रण होता है। हिंदू धर्म के अनुसार पहले साल के अंत, तीसरे और पांचवें वर्ष में बच्चों का मुंडन कराया जाता है। तब सिर में कुछ बाल छोड़ दिए जाते हैं। जिसे चोटी कही जाती है।