आम की अनेक किस्में होती हैं। आम अनेक पुष्णकटिबंधीय स्थानों में पैदा होता है। आम पैदा करनेवाले देशों में भारत का पहला स्थान है। आम की कुछ किस्में ऐसी होती हैं जिनमें रेशा बहुत अधिक होता है। परंतु बहुत-सी महत्त्वपूर्ण किस्में ऐसी भी हैं जिनमें रेशा बहुत कम और बहुत अधिक स्वादिष्ट गूदे की अधिकता होती है। आम की कुछ किस्में ऐसी भी होती हैं जो चूसने के काम आती हैं।
आम के फल के अंदर बहुत मोटी गुठली होती है। आम का पौधा सदा हरा-भरा रहता है। आम के वृक्ष की विशेषता यह है कि इसका प्रत्येक भाग मनुष्य के उपयोग में आता है। शुभ कार्य के समय आम के पत्तों की बंदनवार बनाई जाती है। आम का फल कच्चे और पके दोनों रूपों में अनेक प्रकार से प्रयोग में आता है। आम के वृक्ष की टहनियां और लकड़ियां हवन के लिए समिधाओं का काम देती हैं। आम के वृक्ष की लकड़ी अनेक कामों में प्रयोग में आती है।
प्राचीन काल के ग्रंथों में आम को स्वर्ग का फल कहा गया है। आम से अनेक कहानियां जुड़ी हुई हैं। पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है कि पार्वतीजी को आम बहुत प्रिय था। परंतु जब शिव और पार्वती हिमालय से पृथ्वी के लोगों को देखने के लिए पृथ्वी पर आए तो हिमालय से आम लाना भूल गए। पार्वतीजी के आग्रह पर शिवजी ने योग माया से धरती पर आम उत्पन्न कर दिए।
दुर्बलता: किसी रोग अथवा अन्य कारणों से जब मनुष्य दुर्बल होने लगता है और उसके शरीर का भार कम होने लगता है, तो ऊपर बताया गया आम्रकल्प बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। आम और दूध का प्रयोग करने से शरीर में शर्करा की कमी पूरी होती है और शरीर बलवान बनता है। वर्ष में एक बार कुछ दिन तक आम और दूध का भोजन करने से शरीर पुष्ट होता है। आम में कार्बोहाइड्रेट तथा विटामिन ‘सी’ के अतिरिक्त कैल्शियम और फास्फोरस और आयरन आदि खनिज भी रहते हैं। इनसे शरीर पुष्ट होता है, उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
आम का प्रयोग करने से पूर्व उसे ठंडे पानी में अथवा धोकर फ्रिज में रखकर ठंडा करना चाहिए। इससे आम की स्वाभाविक गर्मी दूर होती है। आम खाने के बाद दूध पीना आवश्यक है। दूध आम के साथ आवश्यक पथ्य है। आम के रस को दूध में मिलाकर पीने से वीर्य की दुर्बलता दूर होती है। शरीर की कमजोरी दूर होकर मर्दाना शक्ति बढ़ती है। अत्यंत दुर्बल शरीरवाले व्यक्तियों के लिए आम और दूध का सेवन बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। इसके निरंतर सेवन करने से दुबले-पतले शरीर पर मोटापा चढ़ता है।
नेत्र रोग: जिन लोगों को रात्रि में कम दिखाई देता है, उनके लिए पका आम अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है। आंखों के रोगों का मुख्य कारण विटामिन ‘ए’ की कमी है। जिन बच्चों को पोषक आहार नहीं मिलता और निर्धनता के कारण विटामिन ‘ए’ की कमी होती है, उन्हें चाहिए कि आम के मौसम में आम का खुलकर प्रयोग करें। आम के प्रयोग से आंखों का खुश्क रहना और आंखों की जलन दूर होती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन पांच हजार विटामिन ‘ए’ प्रति यूनिट की आवश्यकता होती है। इसकी आपूर्ति केवल 100 ग्राम आम चूसने से हो जाती है।
तपेदिक में: यक्ष्मा अथवा तपेदिक होने का प्रमुख कारण शारीरिक कमजोरी है। आम के रस के साथ शहद मिलाकर दिन में दो बार प्रातः और सायंकाल प्रयोग करने से तपेदिक के रोगी को लाभ होता है। तपेदिक के रोगी के लिए आवश्यक है कि आम के रस के साथ दूध में पिप्पली उबालकर पीएं। इससे जल्दी लाभ होता है। तपेदिक के व्यक्ति यदि आम के रस के साथ लहसुन की एक-दो कलियां छीलकर दूध में उबालकर पीते रहें तो और भी अधिक जल्दी लाभ होता है।
मधुमेह: मधुमेह के रोगी के लिए आम के कोमल पत्तों का रस अथवा उनका काढा बनाकर प्रातःकाल पीते रहने से मधुमेह की प्रारम्भिक स्थिति में रोग बढ़ने का खतरा दूर हो जाता है। आम के पत्तों का एक और प्रयोग यह है कि उन्हें सुखाकर उनका चूर्ण बनाकर एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ दिन में दो बार लेने से मधुमेह के रोगियों को निश्चित रूप से लाभ होता है।
दिमागी कमजोरी में: दिमागी कमजोरी के लिए एक कप आम का रस, थोड़ा दूध और एक चम्मच अदरक का रस तथा चीनी मिलाकर पीने से दिमागी कमजोरी दूर होती है। दिमागी कमजोरी के कारण सिरदर्द रहना और उसके कारण आंखों के आगे अंधेरा छाना दूर होता है। इससे शारीरिक रक्त भी साफ होता है। रक्त की शुद्धि के कारण शरीर स्वस्थ रहता है। आम के रस का प्रयोग करनेवाले के मुख पर एक विशेष प्रकार की कांति झलकने लगती है।
पेट के रोगों में: आम पेट के रोगों में भी लाभ करता है। आम की गुठली को सुखाकर उसका चूर्ण बना लेना चाहिए। गुठली का चूर्ण डेढ़ से दो ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लेने से दस्त दूर होते हैं। आम के रस में थोड़ा दही मिलाकर एक चम्मच अदरक के रस के साथ दिन में 3 बार लेने से दस्त, अपच और बवासीर में लाभ होता है। आम एक ऐसा फल है जिससे कब्ज प्राकृतिक रूप से दूर होती है।