आंवला बहुत ही महत्त्वपूर्ण फल है। इसे प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया गया एक tतोहफा कहा जा सकता हे। आम्ले को अमृतफल कहा गया विला है। इसे किसी भी प्रकार प्रयोग करें, यह कभी हानि नहीं करता। आयुर्वेद की ऐसी अनेक औषधियां हैं जिनमें आंवले का प्रयोग होता है, जिनकी गणना करनी कठिन है। इनमें एक प्रमुख त्रिफला है जिसमें हरड़ और बहेड़े के अतिरिक्त प्रमुख अंग आंवला होता है।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि सब फलों से अधिक आंवले में विटामिन ‘सी’ की मात्रा रहती है। मनुष्य को होनेवाला संभवतः कोई रोग ऐसा नहीं होता जिसमें आंवले का प्रयोग नहीं किया जा सके। आंवले में सभी रोगों को दूर करने की शक्ति होती है। आंवले का सबसे बड़ा गुण शरीर को रोगों से मुक्त रखकर शारीरिक शक्ति स्थिर रखना है। आंवले से बना आयुर्वेद का एक चमत्कार आज संसार भर में प्रसिद्ध है। च्यवन ऋषि ने इसका उपयोग कर वृद्धावस्था में नई शक्ति प्राप्त की थी। आयुर्वेद के ग्रंथों में आंवले का वर्णन किया गया है। आंवले को सभी खट्टे फलों में महत्त्वपूर्ण बताया गया है। च्यवनप्राश की सिफारिश वैद्य लोगों के अतिरिक्त हकीम और डॉक्टर लोग भी शारीरिक शक्ति को स्थिर रखने के लिए करते हैं।
शारीरिक शक्ति को स्थिर रखने के लिए:
कच्चे आंवले को कद्दूकस करके उसे निचोड़कर रस निकालकर दो चम्मच रस में आधा चम्मच शहद मिलाकर प्रातःकाल लेने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। आंखों की ज्योति बनी रहती है। हृदय की बेचैनी दूर होती है। आंवले का सबसे अच्छा प्रयोग करने का ढंग यही है कि उसे किसी भी रूप में कच्चा खाया जाए। इस प्रकार के प्रयोगों से विटामिन ‘सी’ नष्ट नहीं होती। आंवले को सब्जी अथवा अचार के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं। आंवले का मुरब्बा, सूखे आंवले का चूर्ण आदि को किसी भी रूप में प्रयोग किया जा सकता है। सूखे आवले को अनेक रोगों में प्रयोग किया जाता है। आंवले की विशेषता यही है कि इसकी विटामिन ‘सी’ किसी भी रूप में नष्ट नहीं होती।
दिल अथवा दिमाग की कमजोरी:
हृदय अथवा मस्तिष्क की कमजोरी के लिए आंवला अनेक प्रकार से प्रयोग में आता है। भोजन करते समय दो आंवलों का रस थोड़े पानी में मिलाकर पीने से दिल और दिमाग की कमजोरी कम होती है। दिमागी कमजोरी दूर करने के लिए प्रातःकाल आंवले का मुरब्बया दूध के साथ लेने से स्मरणशक्ति बढ़ती है। हृदय रोगियों के लिए यह इसलिए उपयोगी है क्योंकि इससे हृदय की दुर्बलता समाप्त होती है। हृदय रोगी यदि आंवले को किसी भी रूप में प्रयोग करते रहेंगे तो हृदय को बल मिलने के साथ-साथ शरीर में रोग-रोधक क्षमता भी बढ़ेगी।
मधुमेह:
मधुमेह के रोगियों के लिए भी आंवला इसीलिए उपयोगी है क्योंकि इसमें विटामिन ‘सी’ की मात्रा अधिक होती है। यदि मधुमेह का रोगी आंवले और करेले का रस मिलाकर प्रतिदिन पीता रहे तो शरीर में इंसुलिन की मात्रा की आपूर्ति होती है। कुछ लोगों ने मधुमेह के रोगियों के लिए आंवले के रस में शहद का प्रयोग करने की वकालत की है, जो सर्वथा हानिकारक है। इसलिए मधुमेह के रोगी को आंवले और करेले का रस दो माह तक प्रतिदिन लेना चाहिए। इससे रक्त में शर्करा की कमी होती है। मधुमेह के रोगियों को प्रायः आंखों से भी कम दिखाई देने लगता है। आंवले और करेले के रस को पीते रहने से मधुमेह के रोगी को आंखों का कोई कृष्ट नहीं होता।
चर्म रोग और कुष्ठ:
आंवले का चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से व्यक्ति चर्म रोगों से बचा रहता है। कुष्ठ रोग में भी प्रयोग करने से अंगों का सड़ना-गलना बन्द हो जाता है।
चेहरे का सौंदर्य:
जैसाकि ऊपर बताया गया है कि आंवले का उपयोग शरीर में रक्त की कमी को दूर करता है। रक्त की कमी दूर होने से चेहरे पर स्वयं सौंदर्य झलकने लगता है। है प्रातः और सायंकाल चेहरे पर जैतून, बादाम रोगन अथवा देसी घी की मालिश करने के बाद आंवले के चूर्ण को पानी में उबालकर ठंडा करके छान लें। बाद में मुंह धोने से चेहरे का सौंदर्य बढ़ता है, झुर्रियां समाप्त होती हैं। चेहरे के दाग-धब्बे भी दूर हो जाते हैं।
बुढ़ापे पर रोक:
जैसाकि च्यवनप्राश के संबंध में बताया जा चुका है, आंवले का किसी भी रूप में प्रयोग करते रहने से व्यक्ति समय से पूर्व बुढ़ापे का शिकार नहीं होता। प्रातःकाल आंवले के रस में शहद मिलाकर पीने के अतिरिक्त आंवले के चूर्ण को आटे में मिलाकर खाने से बुढ़ापा समय से पूर्व नहीं आता। आंवले का चूर्ण, आंवले का मुरब्बा, आंवले का अचार, आंवले का रस तथा आंवले से बनी हुई किसी भी प्रकार की औषधि का प्रयोग करते रहने से व्यक्ति जल्दी बुढ़ापे का शिकार नहीं होता, अर्थात् आंवले से बुढ़ापे पर रोक लगती है।