शिव पुराण के अनुसार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पृथ्वी पर विराजमान भगवान शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग बताया गया है। गुजरात का सोमनाथ मंदिर देवों के देव भगवान शिव शंकर को समर्पित है। यह गुजरात के वेरावल बदंरगाह से कुछ ही दूरी पर प्रभास पाटन में स्थित है। शिव महापुराण में सभी ज्योतिर्लिंगों के बारे बताया गया है। सोमनाथ के शिवलिंग की स्थापना खुद चंद्र देव ने की थी।
यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर की खास विशेषता यह है कि इसे लगभग 17 बार विदेशी आक्रामणकारियों द्वारा तोड़ा गया, लेकिन हर बार इसका और भी भव्यता के साथ पुर्ननिर्माण किया गया। शिवपुराण के अनुसार चंद्र देव ने यहां राजा दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या की थी। सोम, चंद्रमा का ही एक नाम है और शिव को चंद्रमा ने अपना नाथ यानि स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी। इसी के चलते ही इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है।
समय-समय पर मंदिर पर कई आक्रमण हुए तोड़-फोड़ की गई। मंदिर पर कुल 17 बार आक्रमण हुए और हर बार मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया गया। सृष्टि की रचना के समय भी यह शिवलिंग मौजूद था ऋग्वेद में भी इसके महत्व का बखान किया गया है। मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे बेहद ही प्राचीन बाण स्तंभ है। ये कोई नहीं जानता कि इसका निर्माण कब हुआ था, किसने कराया था और क्यों कराया था।
इस बाण स्तंभ पर लिखा है, आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव, पर्यंत अबाधित ज्योर्तिमार्ग। इसका मतलब ये कि समुद्र के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है। सोमनाथ मंदिर के उस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक अर्थात अंटार्टिका तक एक सीधी रेखा खिंची जाए तो बीच में एक भी पहाड़ या भूखंड का टुकड़ा नहीं आता है। उस काल में भी लोगों को ये जानकारी थी कि दक्षिणी ध्रुव कहां है और धरती गोल है।