आप जानते होंगे की कई साल पहले मशरूम के बारे में बहुत कम लोगो को पता था लेकिन आज भारत में हर घर में मशरूम खाया जाता है। खेती के मामले में भी मशरुम बेस्ट माना जाता है। 1992 में पंजाब के संजीव सिंह मशरूम की खेती करने वाले एकमात्र किसान थे। शुरुआती मुश्किलों के बाद आज वे इस खेती से सालाना करीब 1.5 करोड़ रुपये कमा रहे हैं।
संजीव का कहना है कि वह केवल 25 वर्ष के थे जब उन्हें पहली बार मशरूम की खेती के बारे में पता चला था। इस बारे में उन्हें दूरदर्शन पर एक कृषि कार्यक्रम से पता चला था। जिसके बाद उन्होंने इस तरह की नई खेती में हाथ आजमाने की सोची। इसे बढ़ने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती है। आजकल वर्टिकल फार्मिंग के जरिए कम जगह में ज्यादा से ज्यादा खेती की जा सकती है। इसके अलावा मशरूम की खेती के लिए मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। हा, इसमें सिर्फ जैविक खाद की जरूरत पड़ती है।
जिस समय संजीव ने शुरुआत की तब इतनी तकनीक विकसित नहीं हुई थी। ऐसे में उन्होंने पहले एक कमरा बनाया और एक धातु के रैक पर खेती शुरू की। लेकिन उससे पहले भी उन्होंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में 1 साल का कोर्स किया था। साथ ही इस दौरान मशरूम की खेती के बारे में सारी जानकारी जुटाई। एक और समस्या यह थी कि इसके बीज दिल्ली से मंगवाने पड़ते थे।
8 साल के प्रयोग और असफल होने के बाद संजीव को सफलता मिली। 2001 के आसपास धीरे-धीरे वह सफल हो गए। फिर 2008 में उन्होंने अपनी प्रयोगशाला खोली और अपने बीज बेचने लगे। कुछ ही समय में उन्होंने 2 एकड़ के क्षेत्र में मशरूम की खेती और इसके बीज उगाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे इनके बीज और मशरूम हिमाचल, हरियाणा और जम्मू तक पहुंचने लगे थे। अब काम इतना बढ़ गया है कि वे एक दिन में 7 क्विंटल मशरूम पैदा करने का काम करते हैं।
इसकी सालाना आय 1.5 करोड़ रुपये के करीब है। इस खेती से उन्हें फायदा हुआ कि आज उन्हें 7 क्विंटल के लिए सिर्फ 2 एकड़ जमीन की जरूरत है, जबकि पारंपरिक खेती में उन्हें करीब 20 एकड़ जमीन की जरूरत होती है। संजीव को पंजाब सरकार द्वारा 2015 में एक नई तरह की खेती के लिए पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पंजाब में उन्हें मशरूम किंग के नाम से जाना जाता है।