यह बड़ा विचित्र रोग है। इसे अपस्मार भी कहते हैं। इसमें व्यक्ति को ऐसा महसूस होता है, जैसे वह अचानक अंधेरे में गिर रहा हो या उससे घिर गया हो। यह रोग सामान्यतः मस्तिष्क की कमजोरी से होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि मिरगी अधिक टी.वी. देखने से उत्पन्न होता है। ऐसे रोगी को किसी योग्य मनोचिकित्सक को दिखाना और उसकी सलाह लेना लाभकारी हो सकता है।
कारण: यह रोग उन लोगों को होता है जो चिन्ता, शोक, भय, क्रोध, ईर्ष्या-द्वेष आदि मनोविकारों से ग्रस्त रहते हैं। मन के ये नकारात्मक भाव श्वसन संस्थान, खून के संचरण, पाचन संस्थान तथा मल-मूत्र संस्थानों पर उलटा प्रभाव डालते हैं। इससे इन संस्थानों में तरह-तरह के विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ये विकार मानसिक शक्ति को क्षीण करना शुरू कर देते हैं। इसके अलावा अधिक मात्रा में वीर्य नष्ट करने, अधिक शराब पीने, अत्यधिक मानसिक व शारीरिक मेहनत करने,
मौसम सम्बंधी खराबी के कारण, आंव, कृमि रोग तथा चोट के कारण व्यक्ति को मिरगी के दौरे आना शुरू हो जाते हैं। बार-बार दौरे पड़ने से व्यक्ति मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो जाता है।
पहचान: मिरगी का दौरा अचानक पड़ता है, अतः व्यक्ति नीचे गिरते ही आंखें फाड़ देता है और बेहोश हो जाता है। बेहोश होने से पहले उसे यह पता नहीं चलता कि दौरा पड़ने वाला है। वह बातें करते-करते, रास्ते में चलते-चलते, बोलते-बतियाते एकाएक बेहोश होकर गिर पड़ता है। उसका शरीर अकड़ने लगता है और गरदन टेढ़ी हो जाती है। आंखें फट जाती हैं। पलकों में एक जगह रुकावट आ जाती है। मुंह से झाग आने लगते हैं और रोगी हाथ-पैर पटकने लगता है। उसके दांत आपस में जकड़ जाते हैं। कभी-कभी तो जीभ दांतों के बीच में आ जाती है। कुछ रोगियों का मल-मूत्र तक उतर जाता है। रोगी को सांस लेने में बहुत कष्ट होता है। उसके हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। सारा शरीर पसीने से भीग जाता । वह काम-धाम करने में असमर्थ हो जाता है। इस प्रकार मिरगी के रोगी के लक्षण शारीरिक क्षमता के अनुसार अलग-अलग होते हैं।
नुस्खे :
जिस समय रोगी को बेहोशी आने लगे, उस समय 10 ग्राम राई पीसकर उसे बार-बार सुंघाएं। इससे रोगी की बेहोशी टूट जाएगी। मिरगी में जब रोगी को थोड़ा-सा होश आ जाए तो एक रत्ती हींग नीबूके रस में मिलाकर चम्मच से उसके मुंह में दें। यह रस तीन-चार बार पिलाएं। यदि मिर्गी का दौरा बैठे-बैठे पड़े तो उसे आराम से लिटाकर मुंह पर ठंडे पानी का छींटा मारें। होश आने पर नीबू के रस में जरा-सा खीरे का रस के मिलाकर घूंट-घूंट पिलाएं।
बेहोशी तोड़ने के लिए शरीफे के पत्तों को पीसकर उनका रस रोगी के नथुनों में डालें। शहतूत का रस, सेब तथा आंवले का मुरब्बा मिरगी के रोगियों के लिए काफी लाभदायक है। ये सब पदार्थ भोजन के बाद उचित मात्रा में लेना चाहिए।
आक के पौधे की जड़ पीस लें। फिर उसे बकरी के दूध में मिलाकर रोगी को चार-पांच बार सुंघाएं। उसे होश आ जाएगा। रोगी के पैरों में सुबह-शाम पीपल के पत्तों का रस मलना चाहिए। तुलसी की चार-पांच पत्तियों में चार रत्ती कपूर मिलाकर चटनी बना लें। इस चटनी को सुंघाने से रोगी को होश आ जाता है। तुलसी के पत्तों के रस में नीबू तथा सेंधा नमक मिलाकर रोगी की नाक डालें। रोगी को कुछ ही देर में होश आ जाएगा।
एक गिलास दूध में चार चम्मच मेहंदी का रस मिलाकर रोगी को पिलाएं। मिरगी के रोगियों के लिए यह रामबाण नुस्खा है। लहसुन की चार-पांच कलियों को कुचलकर सुंघाने से भी रोगी उठकर बैठ जाता है। रोगी को दो चम्मच प्याज का रस पिलाकर ऊपर से आधा चम्मच भुने हुए जीरे का चूर्ण दें। कुछ दिनों तक लगातार नियमित रूप से यह नुस्खा देने पर मिरगी का रोग सदैव के लिए चला जाता है। आक के दूध को नारियल के तेल में मिलाकर पैर के तलवों, हथेलियों तथा बांहों पर मलने से मिरगी का पक्ष घट जाता है। दौरा पड़ने के बाद भी रोगी को थोड़ा-बहुत होश रहता है।