पेड़ से अलग किया गया नारियल ऊपर से चमकदार हरे रंग का होता है। इसका ऊपर का कवर इतना कठोर होता है कि उसमें कोई भी चीज अथवा पानी नहीं जा सकता। इस कठोर छिलके के नीचे नारियल की जटा होती है और जटा उतारने पर एक बहुत कड़ा और सूखा खोल होता है जिसके अंदर नारियल का फल सुरक्षित रहता है। नारियल का रंग ऊपर से भूरा परंतु अंदर से काटने पर दूध जैसा सफेद निकलता है। इसे नारियल की गिरी कहते हैं। इसके बीच में से एक मिठासयुक्त ताजगी देनेवाला रस निकलता है। यह पानी जैसा तरल पोषक और शीतलता देनेवाला होता है।
नारियल की विशेषता यह है कि पैदा होने के बाद से ही इसे प्रत्येक स्थिति से प्रयोग में लाया जा सकता है। पूरी तरह से पक जाने से पूर्व भी इसका प्रयोग अत्यंत ही गुणकारी सिद्ध होता है। कच्चा होने पर इसका पानी शरीर में एक नई स्फूर्ति और ताजगी देता है। कच्चा होने की स्थिति में इसके बीज की गिरी में ऐसे अनेक आवश्यक तत्त्व रहते हैं जो बड़ी सरलतापूर्वक शरीर में पच जाते हैं। जब इसकी गिरी पक जाती है तो उसमें कार्बोहाइड्रेट और वसा का विकास होता है। अन्य गिरियों के समान इसमें भी प्रोटीन की काफी मात्रा रहती है। गिरी की अपेक्षा नारियल के पानी में विटामिन ‘ए’ की काफी मात्रा रहती है। इसमें विद्यमान खनिज लवणों से शरीर के विकास और उसकी कमियों की पूर्ति में विशेष सहायता मिलती है।
कृमिनाशक: नारियल का पानी पीने और कच्चा नारियल खाने से पेट के कीड़े समाप्त होते हैं। नारियल का गूदा चबाकर खाने के 3 घंटे बाद 200 ग्राम दूध में 2 चम्मच अरंडी का तेल मिलाकर पीने से प्रातःकाल मल साफ हो जाता है और दो-तीन दिन तक प्रयोग करने से पेट के कीड़े मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
हिचकियां और सूखी खांसी: नारियल की जटाओं को जलाकर उनकी राख बना लें। उसे पानी में घोलकर खद्दर के मोटे कपड़े से छानकर एक कप की मात्रा में पीने से हिचकिया दूर होती हैं। सूखी खांसी में नारियल के दूध में एक चम्मच खसखस का दूध और एक चम्मच शहद मिलाकर रात को सोने से पहले पीने से रात-भर खांसी नहीं उठती। अधिक सिगरेट पीनेवालों को भी इससे लाभ होता है।
हैजा अथवा उल्टियां: हैजा अथवा उल्टियों में नारियल का ताजा पानी पिलाने से उल्टियां बंद हो जाती हैं। नारियल के पानी में यदि 2-4 बूंदें नींबू के रस की मिलाकर दी जाएं तो और भी अधिक फायदा होता है। इस घोल के पीने से हैजे की स्थिति में शरीर में तरल तत्त्व की कमी की आपूर्ति होती है। ऐसी स्थिति में जब शरीर में जल की कमी हो जाए तो नींबू के रस से युक्त नारियल के पानी को थोड़ी-थोड़ी देर बाद पीने से शरीर में जल की कमी नहीं होने पाती और रोगी को लाभ होता है।
तपेदिक: तपेदिक के रोगी को प्रतिदिन 25 ग्राम कच्चा नारियल किसी भी स्थिति में खिलाने से तपेदिक के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और फेफड़ों को बल मिलता है।
खूनी बवासीर: खूनी बवासीर में नारियल की जटा को जलाकर राख बनाने और उसे भली प्रकार बारीक करके पानी में मिलाकर छानकर पीने से अथवा जटा की राख की पानी के साथ फंकी लेने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
पित्त प्रकोप: गैस अथवा पित्त प्रकोप में नारियल का प्रयोग लाभदायक सिद्ध होता है। इससे गैस, सीने अथवा पेट में जलन, मुख के छाले आदि दूर होते हैं। कच्चे नारियल को पीसकर उसमें सफेद चंदन का बूरा 10 ग्राम की मात्रा में एक गिलास पानी में भिगो दें। प्रातःकाल उसे मसल और छानकर खाली पेट पीने से पेट की जलन और पित्त से पैदा होनेवाले रोग दूर होते हैं।
गर्भ के बच्चे पर प्रभाव: गर्भधारण करने के बाद से महिलाएं कच्चे नारियल की गिरी के तीन-चार टुकड़े मक्खन और मिश्री में मिलाकर खाती रहें तो उनका पैदा होनेवाला शिशु निश्चित रूप से गोरे रंग का होगा। गर्भवती माता को नारियल की गिरी खाने के बाद सौंफ भी चबाते रहना चाहिए। इस प्रकार उसको शक्ति भी प्राप्त होती है और बच्चा स्वस्थ होने के साथ गोरे रंग का भी होता है।
पाचन संस्थान की गड़बड़ी: पाचन संस्थान की गड़बड़ी में कच्चे नारियल की गिरी खाने से बहुत लाभ होता है। इससे अपच दूर होता है। आंतों की सूजन को आराम मिलता है। पेट के फोड़े को शांति प्राप्त होती है। दस्तों, संग्रहणी और बवासीर में लाभ होता है। अरुचि और अपच के लिए नारियल का पानी अत्यंत गुणकारी सिद्ध होता है।