सच तो यह है कि यदि हम इन भुलाए गए नुस्खों के अनुसार अपनी जीवन शैली को चलाने का प्रयास करें तो बीमारी हमें देखकर दूर भाग जाएगी। सोचने की बात है कि हमारे पूर्वज इन नुस्खों का इस्तेमाल करके दीर्घजीवी होते थे। यहां हम कुछ विशिष्ट कहावतों के माध्यम से नीरोग रहने के सूत्र आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं.
जैसा खावे अन्न। वैसा उपजै मन ॥ अर्थात मनुष्य जैसा भोजन करता है, उसका मन भी वैसा ही बन जाता है।
खाई के परि रहु। मारि के टरि रहु ।। अर्थात कोई कारणवश किसी व्यक्ति को मारने के पश्चात् तुरंत भाग जाना चाहिए। उसी तरह खाना खाने के बाद विश्राम करना चाहिए।
खाई के मूतै सूतै बाऊं। काहे का बैद बुलावै गाऊं ॥ अर्थात भोजन करने के बाद मूत्र त्याग करके बाई करवट सोने से कभी वैद्य को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ती।
रहे नीरोगी जब कम खाय । बिगरै काम जो गम खाय ॥ अर्थात, वह व्यक्ति बीमार नहीं पड़ता जो कम खाता है। इसी प्रकार गम यानी धैर्य धारण करने वाले व्यक्ति के काम कम बिगड़ते हैं।
मूंग की दाल, कै खाय रोगी कै खाय भोगी ॥ अर्थात्-मूंग की दाल या तो रोगी को दी जाती है या उस व्यक्ति को जिसका पेट हर समय खराब रहता है।
प्रातःकाल खटिया तै उठकै, पिये तुरंतै पानी। कबहूं घर मां बैद न अहिहैं, बात घाघ कै जानी ॥ अर्थात सुबह के समय खाट से उठकर तुरन्त पानी पीने वाले व्यक्ति के घर वैद्य कभी नहीं आता यानी वह नीरोग रहता है।
क्वार करेला, चैत गुड़, सावन साग न खाय। ऐसा बोलै भड्डरी, मन भावै तह जाय ॥ अर्थात, क्वार के महीने में करेले की सब्जी, चैत में गुड़ तथा सावन के मास में साग नहीं खाना चाहिए। कवि भट्टरी कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति नीरोग रहता है, अतः कहीं भी आ-जा सकता है।
औंरा हर्रा, पीपरि चित्त सेंधा नमक मिलाओ मित्त ॥ जूर जूड़ी और खांसी जाय। नींद भरि सौवे बहुत मोटाय ॥ अर्थात्-भुनी हुई हरड़, पीपल तथा सेंधा नमक मिलाकर चूर्ण तैयार कर लें। इस चूर्ण के सेवन से जूड़ी-बुखार (मलेरिया) और खांसी नष्ट हो जाती है। तब मनुष्य आराम से गहरी नींद सोता है। इससे उसका शरीर मोटा हो जाता है।
बासी भात तैबासी माठा, और ककरी के बतिया। परे परे जुड़ावन आवै मुई लेब्या की घटिया ॥ बासी चावल और तीन दिन का रखा हुआ मट्ठा नहीं खाना चाहिए क्योंकि ये दोनों विषैले हो जाते हैं। इस रूप में इनका सेवन करने से या तो मनुष्य बीमार पड़ जाता है या फिर कालरा होने से उसकी मृत्यु हो जाती है।