आयशा मलिक, पाकिस्तानी उच्चतम न्यायाल की पहली महिला न्यायाधीशने सोमवार को शपथ ग्रहण की। समारोह के बाद न्यायमूर्ति अहमद ने कहा, ‘न्यायमूर्ति मलिक उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बनने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं। उनकी पदोन्नति के लिए कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह का श्रेय पाने का हकदार नहीं है।’ इस घटना को रूढ़िवादी मुस्लिम देश के न्यायिक इतिहास में मील का पत्थर माना जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद ने उच्चतम न्यायालय के सेरेमोनियल हॉल में आयोजित समारोह में 55 वर्षीय न्यायमूर्ति मलिक को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए न्यायमूर्ति मलिक को बधाई दी। उन्होंने ट्विटर पर शपथ ग्रहण समारोह से जुड़ी तस्वीर साझा करते हुए लिखा, ‘पाकिस्तान में महिला सशक्तीकरण को बयां करने वाली एक शानदार तस्वीर।’ इस समारोह में शीर्ष अदालत के कई न्यायाधीशों, अटॉर्नी जनरल, वकीलों और विधि एवं न्याय आयोग के अधिकारियों ने हिस्सा लिया।
जेसीपी पाकिस्तान में पदोन्नति के लिए न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश करने वाली समिति है। न्यायमूर्ति मलिक की पदोन्नति से जुड़ी जेसीपी की बैठक की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश अहमद ने की थी। इसमें फैसले से पहले साढ़े तीन घंटे तक काफी गरमागरम बहस होने की चर्चा है। जेसीपी के बाद न्यायमूर्ति मलिक का नाम शीर्ष न्यायाधीशों की नियुक्ति से जड़ी द्विदलीय संसदीय समिति के पास आया, जिसने उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी।
लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की वरिष्ठता सूची में चौथे पायदान पर होने के बावजूद उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति मलिक की पदोन्नति का काफी विरोध हुआ था। पाकिस्तान के न्यायिक आयोग (जेसीपी) ने बीते साल उनका नाम खारिज कर दिया था। चौधरी ने उम्मीद जताई कि न्यायमूर्ति मलिक मुल्क के न्यायिक इतिहास की बेहद उत्कृष्ट न्यायाधीश साबित होंगी।
न्यायमूर्ति मलिक ने अपने न्यायिक सफर का सबसे ऐतिहासिक फैसला जून 2021 में सुनाया था। जब उन्होंने यौन अपराध की शिकार लड़कियों और महिलाओं के कौमार्य परीक्षण को अवैध व पाकिस्तानी संविधान के खिलाफ करार दिया था। उन्होंने कानून की पढ़ाई लाहौर स्थित पाकिस्तान कॉलेज ऑफ लॉ से की।