अल्फ्रेड वेगनर इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट ऑटन पर्सर जर्मन आइसब्रेकर जहाज पर अंटार्कटिका में व्हेल मछलियों पर स्टडी कर रहे थे। तभी उनके ग्रैजुएट स्टूडेंट लिलियन बोरिंगर ने अपने कैमरा मे कुछ अजीबो-गरीब नजारा देखा। उन्होंने ऑटन को ब्रिज पर बुलाया। जब ऑटन पर्सरने स्क्रीन को देखा तो दंग रह गए। जहाज के नीचे उन्हे करोड़ों की संख्या में आइसफिश के घोंसले दिख रहे थे।
ये घोंसले अंटार्कटिका के वेडेल सागर की तलहटी में खोजे गए। इससे पहले कभी भी इतनी ज्यादा मात्रा में किसी भी मछली के घरों को नहीं देखा गया था। इतनी मात्रा में इन मछलियों की संख्या और घोंसले देखकर वैज्ञानिक हैरान रह गए। यह किसी भी मछली की दुनिया में सबसे बड़ा प्रजनन केंद्र माना जा रहा है।
आइसफिश के खून में हीमोग्लोबिन नहीं होने की वजह से इनका खून सफेद रंग का होता है। इसलिए इन्हें व्हाइट ब्लडेड भी कहा जाता है। आइसफिश के घोंसले सागर की तलहटी की मिट्टी में कटोरे के आकार के बने दिखाई दे रहे थे। ये आमतौर पर बेहद सर्द दक्षिणी समुद्री इलाकों में रहती हैं। ये इकलौती ऐसी कशेरुकीय यानी वर्टिब्रेट जीव हैं।
ऑटन और लिलियन ओशन फ्लोर ऑब्जरवेशन एंड बैथीमेट्री सिस्टम (OFOBS) की स्क्रीन पर लाइव देख रहे थे। यह कैमरा जहाज के नीचे लगा हुआ था। कैमरा आइसब्रेकर के साथ घूमता जा रहा था और इन खूबसूरत प्राचीन मछलियों का वीडियो बनाता जा रहा था। इन दोनों ने देखा कि आइसफिश ने हर 19 इंच की दूरी पर अपना घोंसला बना रखा है। ये नजारा इन्होंने करीब 240 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ देखा।
इन मछलियों को वैज्ञानिक भाषा में नोटोथेनिऑयड आइसफिश कहते हैं। ऑटन अगले दिन अल्फ्रेड वेगनर इंस्टीट्यूट को फोन करके यह जानकारी दी ओर उन्हें वीडियो लिंक भेजा। इसके बाद इंस्टीट्यूट ने और वीडियो बनाने व रिसर्च करने को कहा। ताकि ज्यादा से ज्यादा जानकारी जमा की जा सके।